गाँव से लौटते हुए इस बार पिता ने सारा सामान लदवा दिया ठकवा मुसहर की पीठ पर
कितने बरस लग गए ये जानने में मुसहर किसी जाति को नहीं दुख को कहते हैं
हिंदी समय में अच्युतानंद मिश्र की रचनाएँ